गुरू बिन कौन बतावै बाट

 गुरू बिन कौन बतावै बाट

गुरू बिन कौन बतावै बाट,

बड़ा विकट यम घाट ||टेका।

भ्रांति पहाड़ी नदिया बिच में,

अहंकार की लाट

काम क्रोध दो पर्वत ठाढ़े,

लोभ चोर संघात ||१||

मद मत्सर का मेघा बरसत,

माया पवन बड़े डाट ।

कहत कबीर सुनो भाई साधो,

क्यों तरना यह घाट ||२||

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