मन रे तू नेकी कर ले
मन रे तू नेकी कर ले
मन रे तू नेकी कर ले,
दो दिन का मेहमान टेका।
जोरु लड़का कुटुंब कबीला,
दो दिन का तन मन का मेला।
४८
अंतकाल उठ चला अकेला,
तज माया मंडान ||१||
कहाँ से आया कहाँ जायेगा,
तन छूटे मन कहाँ रहेगा।
आखिर तुझको कौन कहेगा,
गुरु बिन आतम ज्ञान ||
कौन तुम्हारा सच्चा साँई,
झूठा है यह सकल पसारा।
कहाँ मुकाम और कहाँ ठिकाना,
का बस्ती का नाम ||३||
रहट माल पनघट जो भरता,
आवत जात भरा औरीता।
जुगन जुगन तू मरता जीता,
क्यों करता अभिमान ||४||
लख चौरासी देख तमासा,
ऊँच नीच घर लेता बासा।
कहें कबीर सुनो भाई साधो,
जपना सद्गुरु नाम ॥५॥
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