जाग रे जंजाली जियरा
जाग रे जंजाली जियरा
जाग रे जंजाली जियरा,
यह तो मेला हाट का ||टेका।
तात मात सुत भाई बंधवा,
यह तो मेला ठाट का ।
अंत समय तू चला अकेला,
जैसे बटोही बाट का ||१||
राज काज सब झूठा धंधा,
जरी पितंबर पाट का ।
महल खजाना रहा भंडारा,
लादा भांडा काठ का ।।२।।
धोबी के घर गदहा होगा,
घर का भया न घाट का।
लालच लोभ धरे शिर गठरी,
जैसे घोड़ा भाट का ॥३॥
रात दिवस तैं खोय गँवाया,
भजन ना किया निराट का।
कहें कबीर सुनो भाई साधो,
जम कूटे ज्यों साट का ॥४॥
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