मोको कहाँ ढूढ़े रे बंदे

 मोको कहाँ ढूढ़े रे बंदे

मोको कहाँ ढूढ़े रे बंदे,

मैं तो तेरे पास में टेक।।

ना तीरथ में ना मूरत में,

ना एकांत निवास में ।

ना मंदिर में ना मस्जिद में,

ना काशी कैलाश में ॥१॥

ना मैं जप में ना मैं तप में,

ना मैं व्रत उपवास में ।

ना मैं क्रिया कर्म में रहता,

नाहीं योग सन्यास में ||२||

नाही प्राण में, नाही पिण्ड में,

ना ब्रह्माण्ड आकाश में।

ना मैं भ्रकुटी भंवर गुफा में,

सब श्वासन की श्वास में ||३||

खोजी होय तुरत मिल जाऊँ,

पल भर की तलास में।

कहै कबीर सुनो भाई साधो,

मैं तो हूँ विश्वास में ॥४॥

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