Bhala hua Mori gagri futi

 

भला हुआ मेरी मटकी फूटी रे ।

मैं तो पनिया भरन से छूटी रे ॥


बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलिया कोय ।

जो दिल खोजा आपणा, तो मुझसा बुरा ना कोय ॥


ये तो घर है प्रेम का, खाला का घर नांहि ।

सीस उतारे भुँई धरे, तब बैठे घर मांहि ॥


हमन है इश्क़ मस्ताना, हमन को हुशारी क्या ।

रहे आज़ाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ॥


कहना था सो कह दिया, अब कछु कहा ना जाये ।

एक गया सो जा रहा, दरिया लहर समाये ॥


लाली मेरे लाल की, जित देखूं तित लाल ।

लाली देखन मैं गयी, मैं भी हो गयी लाल ॥


हँस हँस कुन्त ना पाया, जिन पाया तिन रोये ।

हाँसि खेले पिया मिले, कौन _____ होये ॥


जाको राखे साईंयाँ, मार सके ना कोये ।

बाल न बांकाँ कर सके, जो जग बैरी होये ॥


प्रेम न भाजी उपजै, प्रेम न हाट बिकाय ।

राजा-प्रजा जोही रूचें, शीश देई ले जाय ॥


कबीरा भाठी कलाल की, बहूतक बैठे आई ।

सिर सौंपें सोई पीवै, नहीं तो पिया ना जाये ॥


सुखिया सब संसार है, खाये और सोये ।

दुखिया दास कबीर है, जागे और रोये ॥


जो कछु सो तुम किया, मैं कछु किया नांहि ।

कहां कहीं जो मैं किया, तुम ही थे मुझ मांहि ॥


अन-राते सुख सोवणा, राते नींद ना आये ।

ज्यूं जल छूटे माछरी, तडफत नैन बहाये ॥


जिनको साँई रंग दिया, कभी ना होये कुरंग ।

दिन दिन वाणी आफ़री, चढे सवाया रंग ॥


ऊंचे पानी ना टिके, नीचे ही ठहराय ।

नीचे होये सो भरि पिये, ऊँचा प्यासा जाय ॥


आठ पहर चौंसठ घडी, मेरे और ना कोये ।

नैना मांहि तू बसे, नींद को ठौर ना होये ॥


सब रगे तान्त रबाब, तन्त दिल बजावे नित ।

आवे न कोइ सुन सके, के साँई के चित ॥


कबीरा बैद्य बुलाया, पकड के देखी बांहि ।

बैद्य न वेधन जानी, फिर भी करे जे मांहि ॥


यार बुलावे भाव सूं, मोपे गया ना जाय ।

दुल्हन मैली पियु उजला, लाग सकूं ना पाय ॥


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