ऐ री सखी मोरे पिया घर आए
भाग लगे इस आंगन को
बल-बल जाऊं मैं अपने पिया के,
चरन लगायो निर्धन को।
मैं तो खड़ी थी आस लगाए,
मेंहदी कजरा मांग सजाए।
देख सूरतिया अपने पिया की,
हार गई मैं तन मन को।
जिसका पिया संग बीते सावन,
उस दुल्हन की रैन सुहागन।
जिस सावन में पिया घर नाहि,
आग लगे उस सावन को।
अपने पिया को मैं किस विध पाऊं,
लाज की मारी मैं तो डूबी डूबी जाऊं
तुम ही जतन करो ऐ री सखी री,
मैं मन भाऊं साजन को।
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