पंडित बाद बदे सो झूठा
पंडित बाद बदे सो झूठा पंडित बाद बदे सो झूठा । राम कहे जगत गति पावे, खांड़ कहे मुख मीठा पावक कहे पाँव जो डाहे, जल कहि तृषा बुझाई भोजन कहे भूख जो भागे, तो दुनिया तर जाई नर के संग सुवा हरि बोले, हरि प्रताप ना जाने जो कबहुँ उड़ि जाय जंगल में, सपने सुर्त ना आने । बिन देखे बिन दरस-परस बिन, नाम लिये का होई - धन के कहे धनिक जो होवे, निरधन रहे न कोई ||३|| सांची प्रीत विषय माया सो. हरि भक्तन के फांसी । कहें कबीर एक नाम भजे बिन, बांधे जमपुर जासी ||४||
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