सो मोरे मन कब भजिहो सतनाम । टेक
सो मोरे मन कब भजिहो सतनाम । टेक
बालापन सब खेल गमायो, ज्वानी में व्यापो काम ।
वृद्ध भये तन काँपन लागे, लटकन लागो चाम । १
लाठी टेकि चलत मारग में, सह्योजात नहिं घाम ।
कानन बहिर नयन नहिं सूझे, दाँत भये बेकाम । २
घर की नारि विमुख होय बैठी, पुत्र करत बदनाम ।
बरबरात है बिरथा बूढ़ा, अटपट आठो जाम । ३
खटिया से भुइँ पर कर दैहैं, छुटि जैहैं धनधाम ।
कहैं कबीर काह तब करिहो, परिहैं यम से काम । ४
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