जतन बिन मिरगाँ ने खेत उजाड्या जतन बिन मिरगाँ ने खेत उजाड्या।

 









जतन बिन मिरगाँ ने खेत उजाड्या

जतन बिन मिरगाँ ने खेत उजाड्या।

सुन रे मितर खेती वाला रै ॥टेर॥

पाँच मिरगला, पच्चीस मिरगली, असली तीन छुकाँरा।




अपने अपने रस का भोगी, चरता है न्यारा न्यारा ॥1॥

मन रे मिरगलें, ने किस बिध रोकुँ, बिड़रत नाही बिड़ार्या।

जोगी, जंगम, जती और सेवड़ा,पंड़ित पढ़ पढ़ हार्या ॥2॥

आम भी खाग्यो, आमली भी खाग्यो, खाग्यो केशर क्यारा।

काया नगर में कुछ भी न छोड्या,ऐसा ही मिरग उजाड्या ॥3॥

शील संतोष की बाड़ छपाले,ध्यान गुरु रखवाला।

प्रेम पारधी बाण संजोले, ज्ञान भाल से मार्या ॥4॥

नाथ गुलाब मिल्या गुरु पूरा, ऐसा ही मिरग बिड़ार्या।

भानीनाथ शरण सतगुरु के, बेग ही बेग संभाल्या ॥5॥

Comments

Popular posts from this blog

पंडित बाद बदे सो झूठा

कचौड़ी गली सून कैले बलमु ।

बसो मोरे नैनन में नंदलाल।